खोजी एनसीआर/ सोनू वर्मा नूंह। सीडीपीओ सविता मलिक का कहना है कि गर्भावस्था वह अवस्था है जिस समय माता के शरीर में भ्रूण बढ़ रहा होता है, यह अवस्था लगभग 9 महिने तक चलती है, गर्भावस्था वह समय में जब
्त्री शारीरिक और मनोवैज्ञानिक तनाव से गुजरती है। इस अवस्था को ठीक तरह से सम्पन्न करने के लिए किशोर अवस्था से ही लड़कियों के शरीर में पोषक तत्व जमा होने लग जाते है। जैसे ही महिला के शरीर में भ्रूण बढऩे लगता है तो भ्रूण अपना पोषण माता के शरीर से लेना शुरू कर देता है। वे महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना के तहत आगंनवाड़ी कार्यकर्ताओं व गर्भवती महिलाओं को जागरूक कर रही थी। गर्भावस्था के दौरान लेने वाले पोषक तत्व: उन्होंने बताया कि गर्भावस्था तीन भागों में विभाजित है, पहली अवस्था 0 से 3 माह, दूसरी अवस्था 3 से 6 माह, तीसरी अवस्था 6 से 9 माह, इन तीनों अवस्थाओं में माताओं का वजन बढ़ जाता है। पोषक तत्वों की आवश्यकता दूसरी व तीसरी अवस्था में बढ़ती है। ऊर्जा: गर्भवती स्त्री को सामान्य किलो कैलोरी की अपेक्षा 300 किलो कैलोरी की अधिक आवश्यकता होती है। हल्का कार्य करने वाली महिलाओं को 1875 किलो कैलोरी प्लस 300 यानी 2175 किलो कैलोरी, मध्य कार्य करने वाली को 2225 किलो कैलोरी प्लस 300 यानी 2525 किलो कैलोरी, अधिक कार्य करने वाली गर्भवती महिला को 2925 प्लस 300 किलो कैलोरी यानी कुल 3225 किलो कैलोरी की आवश्यकता होती है। प्रोटीन: गर्भवती महिला के शरीर में टूटे-फूटे तंतुओ की मरम्मत के लिए, भ्रूण की वृद्धि के लिए गर्भावस्था में प्रोटीन अधिक मात्रा में चाहिए। कैल्सियम एवं फास्फोर्स: गर्भवती स्त्री के छठे व सातवें महिने में भ्रूण की जरूरत दो से पांच गुणा अधिक कैल्सियम की होती है। कैल्सियम की जरूरत को पूरा करने के लिए माता को अपने आहार में दूध और दूध से बने पदार्थ मांस, मछली,अंडा, हरी पत्तेदार सब्जियां, साबुत अनाज, तिल तथा सूखे मेवे पर्याप्त मात्रा में लेने चाहिए। आयोडीन: आयोडीन की कमी होने से शिशु का वजन और वृद्धि कम होती है तथा शिशु बोनेपन का शिकार हो जाता है। गर्भवती माता को अपनी आयोडीन की पूर्ति अनाज, प्याज, हरी पत्तेदार सब्जियों से करनी चाहिए। लोहा: गर्भवती महिला को लोहे की आवश्यकता को पूरा करने के लिए हरी पत्तेदार सब्जियां, केला, सेब, अनार, मटर, सोयाबीन, चने की दाल, उड़द की दाल, मूंग की दाल इत्यादि का सेवन करना चाहिए। विटामिन डी: गर्भवती महिलाएं अंडा, दूध तथा दूध से बने पदार्थ मक्खन व मछली के चकृत के तेल से विटामिन डी प्राप्त कर सकती है। विटामिन सी: शरीर को रोगों से बचाने एवं आयरन के अवशेषण के लिए खट्टे खाद्य पदार्थो का सेवन करना चाहिए। जल: कब्ज से छुटकारा पाने के लिए गर्भवती महिला को जल का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए। गर्भावस्था में माता की पौष्ठिक आवश्यकताएं पूरी नहीं होने पर निम्र प्रभाव पड़ते है: आहार विशेषज्ञ के अनुसार पौष्ठिक तत्व की जरूरत पूरी ना होने पर माता का स्वास्थ्य कमजोर हो जाता है, अस्वस्थ शिशु का जन्म होता है, समय से पहले शिशु पैदा होता है, माता की मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है, शिशु का अनिमिया से ग्रस्त होता है, भ्रूण का मानसिक विकास कम होता है, माता में हड्डियों संबंधी रोग पैदा होता है, नये जन्मे शिशु का संक्रमण रोगों से ग्रस्त होना इत्यादि शामिल है। गर्भवती स्त्रियों के आहार में शामिल ना करने योग्य पदार्थ: उन्होंने बताया कि तले हुए पदार्थ, मिर्च मसाले, पेय पदार्थ, मक्खन, छना हुआ आट्टा, अधिक मीठी चीजे, कॉफी व चाय इत्यादि पदार्थो का गर्भवती स्त्रियों को कम से कम सेवन करना चाहिए। गर्भवती स्त्रियों के लिए आहार व्यवस्था के लिए ध्यान रखने योग्य बातें: उन्होंने बताया कि जल को पर्याप्त मात्रा में लेना चाहिए, आहर मे विभिन्नता होनी चाहिए, रेशेदार पदार्थ अधिक होने चाहिए, थोड़े-थोड़े समय बाद थोड़ी-थोड़ी मात्रा में उसकी रूची अनुसार भोजन लेना चाहिए। मुख्य आहारों के बीच लस्सी, नारियल, नींबू पानी लेते रहना चाहिए, उसका आहार पांच खाद्य समुह से मिलकर बनना चाहिए, गर्भवती स्त्री को आहार में कार्बोज और वसा वाले आहार की अपेक्षा प्रोटीन, विटामिन, खनिज लवण एवं लाल-पीली और हरी सब्जियां और खट्टे रसदार फल अवश्य होने चाहिए, आहार सोने से दो-तीन घंटे पहले करना चाहिए।
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