वाशिंगटन । अमेरिका में बाइडन प्रशासन के सत्ता में आने के बाद कई भारतीयों को बड़ा पद मिल चुका है। अब इस लिस्ट में इंडियन-अमेरिकन कांग्रेसवूमेन प्रमिला जयपाल का नाम शामिल हो गया है। जयपाल को
ंटीट्रस्ट, कमर्शियल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव लॉ की सबकमेटी में उपाध्यक्ष के लिए नामित किया गया है। 55 वर्षीय डेमोक्रेटिक पार्टी की सांसद जयपाल ने इस पर खुशी जताई है। उनका कहना है कि वो भाग्यशाली हैं कि उन्हें इस सबकमेटी को लीड करने का मौका दिया गया है। दो दिन पहले ही उन्होंने डेमोक्रेट पार्टी की सांसद एलिजाबेथ वॉरेन के साथ मिलकर हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में धनी लोगों पर नए टैक्स लगाने का प्रस्ताव सामने रखा था। इसके पीछे उनका मकसद विकास के लिए धन और संसाधन जुटाना है। इस प्रस्ताव का नाम उन्होंने अल्ट्रा मिलिनेयर टैक्स एक्ट रखा है। इसके तहत उन्होंने ऐसे लोगों पर जिनकी कुल संपत्ति पांच करोड़ से एक अरब डॉलर तक है, दो फीसदी तक वार्षिक कर लगाने का प्रस्ताव किया है। इससे अधिक की संपत्ति वालों पर कर तीन फीसद का प्रस्ताव भी किया गया है। उनके द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि लोगों के हितों के लिए काम करते हुए ज्यादा पारदर्शिता बरती जाएगी और गलत जानकारियों को फैलने से रोकने और फ्री प्रेस को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। इसके माध्यम से एक स्वतंत्र प्रेस या प्रेस की आजादी को बढ़ावा दिया जा सकेगा। गौरतलब है कि पिछले वर्ष जयपाल ने तीन टेक्नीकल प्लेटफॉर्म के पूर्व सीईओ जेफ बेजोस, फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग से कुछ सवाल पूछे थे। गौरतलब है कि 2020 में हुए चुनाव में अमेरिकी कांग्रेस के निचले सदन प्रतिनिधि सभा के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी के सभी चार भारतीय मूल के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी। इनमें डॉ.एमी बेरा, प्रमिला जयपाल, रो खन्ना और राजा कृष्णमूर्ति शामिल थे। इन्होंने नवंबर में बाइडन को कहा था कि उन्हें राष्ट्रपति ट्रंप के समर्थकों और उनके द्वारा उठाए मुद्दों को भी समझना जरूरी होगा। उन्होंने बाइडन और कमला हैरिस को इतिहास रचने के लिए भी बधाई दी थी और इसे एक एतिहासिक पल बताया था। प्रमिला को दिसंबर 2020 में अमेरिकी संसद के कांग्रेशनल प्रोग्रेसिव कॉकस (सीपीसी) की अध्यक्ष के तौर पर भी चुना गया था। ये पद प्रभावी और अनुभवी सांसद को दिया जाता है। आपको बता दें कि प्रमिला जयपाल का जन्म 1966 में तत्कालीन मद्रास (चेन्नई का पुराना नाम) में हुआ था। उनका अधिकतर समय इंडोनेशिया और सिंगापुर में भी बीता है। 1982 में वो जब 16 वर्ष की थीं तब अमेरिका आ गई थीं। उनकी कॉलेज की पढ़ाई अमेरिका की जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी से हुई है। इसके बाद उन्होंने नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री हासिल की। यहां से डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक फाइनेंशियल एनालिस्ट के तौर पर अपनी सेवाएं दी। इसके अलावा वो शिकागो और थाइलैंड के डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट से भी जुड़ीं। 1991 में पब्लिक सेक्टर से जुड़ने से पहले उन्होंने मार्केटिंग, मेडिकल और सेल्स फील्ड में अपनी सेवाएं दी हैं। अमेरिका में हुए 9/11 हमले के बाद उन्होंने अमेरिका में विदेशी मूल के नागरिकों को संगठित होकर एक ग्रुप बनाने का समर्थन किया था। इकसे अलावा उन्होंने हेट फ्री जोन की स्थापना की। ये वक्त ऐसा था जब एशियाई मूल के लोगों के साथ अमेरिका में सही बर्ताव नहीं हो रहा था। उन्हें संदिग्ध नजरों से देखा जाता था। उन्होंने इमीग्रेशन के नियमों को और पारदर्शी बनाने के साथ-साथ इन्हें लचीला बनाने का भी प्रयास किया। बुश प्रशासन के दौरान वो उस वक्त सुर्खियों में आई थी जब उन्होंने देशभर में फैले करीब 4000 सोमालिया के लोगों को सुरक्षित वापस भेजने में सफलता हासिल की थी। 2008 में उन्होंने हेट फ्री जोन का नाम बदलकर वन अमेरिका रख दिया था। 2013 में उन्हें चेंपियन ऑफ चेंज के नाम से जाना गया। ये खिताब उन्हें व्हाइट हासउ से मिला था। उन्होंने ट्रंप प्रशासन में अपनी आवाज खुल कर बुलंद रखी थी। इसकी वजह से उन्हें गिरफ्तार तक होना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने इस गिरफ्तार को गर्व का विषय बताया था। उनका कहना था कि यदि अमानवीय और दरिंदगी के खिलाफ आवाज उठाने की वजह से उन्हें जेल जाना पड़ता है तो ये उनके लिए गर्व का विषय है।
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