सत्संग महापुरुषों की अमृत वाणी से आपको सरोबार किये रखता है। सत्संग परमात्मा का गुणगान है। राधास्वामी मत सत्संग का मत है, सन्तों का मत है। यह सुरत शब्द का योग जना कर आपको सहज भक्ति का मार्ग देत
है। यह सत्संग विचार परमसन्त सतगुरु कँवर साहेब जी महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में प्रकट किए। हुजूर महाराज जी ने फरमाया कि सन्तों की बाणी हमारे हृदय में भक्ति की मजबूती देती है। सन्तों का संग मनुष्य को उसकी भूल याद दिलाकर उन्हें सही मार्ग अपनाने को प्रेरित करती है। गुरु महाराज जी ने कहा कि जब इंसान दुनियादारी से त्रस्त हो जाता है तब वह सतगुरु के चरणों में फरियाद करता है कि हे सतगुरु मुझे अपना धाम बख्शो। सन्तमत की यही खूबी है कि वह एक ही समय में आपके इस जगत को भी सँवारता है और सहज भक्ति की कमाई से आने वाले जगत को भी सँवारता है। हुजूर महाराज जी ने फरमाया कि हमारी रूह इस जगत जंजाल में फंस कर अपने ही कल्याण का तरीका भूल गई है। हम जिन सांसारिक सुखों में गाफिल हैं वे सब काल ने मुहैया कराए हैं क्योंकि काल महाराज अपने साम्राज्य से किसी भी रूह को जाने नहीं देना चाहता। उन्होंने कहा कि इस झमेले में फंस कर रूह गुप्त हो जाती है और मन प्रकट रूप में आकर हमें उलझाता है। इसी गुप्त गोई रूह को उजागर करने का काम सन्त करते हैं। सतगुरु कँवर साहेब ने फरमाया कि जब तक हम सत्संग में रहते हैं तो हमारे मन में तरंग उठती हैं कि मैं अब इसी रास्ते पर चलूंगा लेकिन सत्संग से दूर होते ही मन में फिर से काम वासना हिलोर मारती हैं। इसीलिए सन्त बार बार जीवो को चेताते है और हर पल सतर्क रहने की चेतावनी देते हैं। सुरत शब्द का योग आपको बाहर से अंतर में समेटता है। यह सहज योग है जिसे हर कोई कर सकता है। यह पाप से विमुख करके राम नाम से जोड़ता है। जो सन्तों के वचन पर भरोसा करता है वहीं इस भक्ति की यात्रा को पूर्ण कर पाता है। जो सन्तों से सतगुरु से विमुख हो जाता है वो सब ठगे जाते हैं। उन्होंने कहा कि जितने भाई बहन नाते रिश्तेदार हैं सब ठग हैं। गुरु महाराज जी ने कहा कि रूह के अनेको दुश्मन हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह, तृष्ना, अहंकार हर पल रूह को हर पल। नुकसान पहुचाने का काम करते हैं। जो डीग जाता है वो लूट जाता है लेकिन जो टीका रहता है वो इस भवसागर से पार जाता है। हुजूर महाराज जी ने कहा कि भक्ति का मार्ग बड़ा कठिन है। सब स्वार्थों में बहे जा रहे हैं। अपने नियमो व सिद्धांतो पर टिका रहने वाला इंसान सब दुखो से पार पा लेता है। कभी विश्वास को मत डिगने दो। आज जिन महापुरुषों के हम गीत गाते हैं वे सब अपने नियमो व सिद्धांतो के पक्के थे। उन्होंने कहा कि फरेबी व स्वार्थी इंसान तो उस हिरन की भांति है जो हरे घास के लिए अपना स्थान छोड़ता रहता है। अपने मन में गुरु के वचन को दृढ़ रखो। जिनको गुरु प्यारा लगता है उन्होंने तो अपने कुल कुटुंब को भी त्याग दिया। हुजूर महाराज जी ने कहा कि जिसने अपने मन को गुरु को सौंप दिया वो बेखटके भक्ति के मार्ग पर चले हैं।
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