तावडू 8 अक्टूबर (दिनेश कुमार): शहर के मुख्यमार्ग पर स्थित माता वैष्णों मंदिर में कथा के दूसरे दिन कथावाचिका देवी मधुश्री उपाध्याय ने कपिल अवतार ध्रुव चरित्र सृष्टि की रचना पर प्रकाश डालते हुए
कहा किए मनुष्य जीवन आदमी को बार-बार नहीं मिलता है। इसलिए इस कलयुग में दया धर्म भगवान के स्मरण से ही सारी योनियों को पार करता है। मनुष्य जीवन का महत्व समझते हुए भगवान की भक्ति में अधिक से अधिक समय देना चाहिए। उन्होंने बताया किए भगवान विष्णु ने पांचवा अवतार कपिल मुनि के रुप में लिया। उन्होंने बताया कि किसी भी काम को करने के लिए मन में विश्वास होना चाहिए, तो कभी भी जीवन में असफल नहीं होंगे। जीवन को सफल बनाने के लिए कथा श्रवण करने से जन्मों का पाप कट जाता है। ध्रुव चरित्र की कथा के बारे में भक्तों को विस्तार से वर्णन कर बताया। आधुनिक समय में प्राणी संस्कारों से दूर भाग रहा है। जीव के बिना शरीर निरर्थक होता है। ऐसे ही संस्कारों के बिना जीवन का कोई मूल्य नहीं होता। भक्ति में दिखावा नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि पूर्वजन्म में स्वायंभुव वंशी ऋषभदेव के पुत्र थे। उन्होंने कहा किए जब सती के विरह में भगवान शंकर की दशा दयनीय हो गई, सती ने भी संकल्प के अनुसार राजा हिमालय के घर पर्वतराज की पुत्री होने पर पार्वती के रुप में जन्म लिया। पार्वती जब बडी हुईं तो हिमालय को उनकी शादी की चिंता सताने लगी। एक दिन देवर्षि नारद हिमालय पहुंचे और पार्वती को देखकर उन्हें भगवान शिव के योग्य बताया। इसके बाद सारी प्रक्रिया शुरु तो हो गई, लेकिन शिव अब भी सती के विरह में ही रहे। ऐसे में शिव को पार्वती के प्रति अनुरक्त करने कामदेव को उनके पास भेजा गया। लेकिन वे भी शिव को विचलित नहीं कर सके और उनकी क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए। इसके बाद वे कैलाश पर्वत चले गए। तीन हजार सालों तक उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की। इसके बाद भगवान शिव का विवाह पार्वती के साथ हुआ। महाआरती के बाद महाप्रसादी का वितरण किया गया।
Comments