नई दिल्ली, । स्वस्थ समाज की अवधारणा को साकार करने के लिए जरूरी है कि लोग सजग रहें। शासन-प्रशासन के स्तर पर भी मिलावट कर मुनाफा कमाने वालों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई हो। ऐसे लोगों की लगातार निग
ानी की व्यवस्था होनी चाहिए, जिनके लिए मुनाफा लोगों की सेहत से ज्यादा महत्वपूर्ण है। सांप निकलने के बाद लकीर पीटने से किसी का भला नहीं हो सकता। त्योहारी सीजन में हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में घटिया किस्म के खोये से बनी मिठाई लोगों को खिला दी गई। बेकरी के घटिया किस्म के उत्पाद लोगों को बेचे गए। इसके अलावा गुड़, इमली, सूजी के रसों के सैंपल मानकों पर खरे नहीं उतरे। दीवाली पर लिए 21 खाद्य वस्तुओं के सैंपल की रिपोर्ट करीब डेढ़ महीने बाद आई तो यह सच सामने आया। हैरत है कि रिपोर्ट उस समय आई, जब त्योहारी सीजन बीत चुका है और मिठाई एवं अन्य उत्पादों को लोग खा चुके हैं। सैंपल की रिपोर्ट करीब डेढ़ महीने बाद आना व्यवस्था पर सवाल खड़े करने के लिए काफी है। अब खाद्य सुरक्षा विभाग इन सभी दुकानदारों को नोटिस जारी करेगा, लेकिन लोगों को हुए नुकसान की भरपाई कतई नहीं हो सकती। समय रहते जांच के नतीजे आने पर इससे बचा जा सकता था। सैंपल की जांच में देरी का एक कारण यह भी है कि प्रदेश में इसके लिए व्यापक पैमाने पर व्यवस्था नहीं की गई है। कंडाघाट में प्रयोगशाला में सैंपल भेजने, जांच होने और रिपोर्ट आने में इतना समय लग जाता है कि खाद्य पदार्थ को तब तक लोग खा चुके होते हैं। मिलावट न सिर्फ व्यापार में नैतिकता के पतन का उदाहरण है, बल्कि यह भी बताती है कि ऐसे लोगों को लोगों की सेहत से कोई सरोकार नहीं है। उनके लिए लोग सिर्फ मुनाफा कमाने की इकाई हैं। ऐसा तंत्र विकसित करना होगा कि हर जिले में खाद्य पदार्थो में मिलावट की जांच की सुविधा मिले। समय रहते खराब वस्तुओं को नष्ट करवाया जाए, जो लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचा सकती हैं। जरूरत सिर्फ मिठाई में मिलावट रोकने की ही नहीं है, मानसिकता में आ रही मिलावट को दूर करने की भी है। मामला लोगों की सेहत से जुड़ा है, इसलिए ढिलाई नहीं होनी चाहिए।
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