मास्को। रूस और यूक्रेन का युद्ध छठे माह में प्रवेश कर चुका है। इस दौरान जहां यूक्रेन को जबरदस्त जान-माल की हानि उठानी पड़ी है वहीं रूस भी अपने जवानों की जान देकर इसकी कीमत चुका रहा है। इस युद
ध में रूस के मारे गए जवानों को लेकर तस्वीर बहुत कुछ साफ नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर जेलेंस्की के अनुसार इस जंग में रूस के 40 हजार से अधिक जवान मारे गए हैं। वहीं अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए का कहना है कि रूस के 15 हजार जवान मारे गए हैं। वहीं रूस आधिकारिक बयानों में इनकी गिनती 2 हजार से भी कम बता रहा है। इसका सही जवाब भले ही कोई भी हो लेकिन ये सभी आंकड़े हैरान करने वाले इसलिए हैं क्योंकि रूस विश्व का एक शक्तिशाली देश है। वो दुनिया के खतरनाक और अत्याधुनिक हथियारों से लैस है। इसके अलावा उसके पास एक विशाल सेना है। ऐसे में इतने रूसी जवानों के मारे जाने की क्या वजह हो सकती है। इसका जवाब रूसी मीडिया और वहां के एक्सपर्ट के पास है। रूस के सबसे बड़े अखबारों में से एक का कहना है कि रूस इस जंगमें उन जवानों को उतार रहा है जिन्हें सही मायने में पूरी ट्रेनिंग भी नहीं दी गई है। महज दो से चार सप्ताह की ट्रेनिंग के बाद जवान खुद को जंग के मोर्चे पर पा रहे हैं। ये ऐसे जवान हैं जिन्हें नहीं पता है कि दुश्मन से बचने की क्या रणनीति होनी चाहिए या क्या रणनीति होती है। इन्हें न तो जंग का कोई अनुभव है और न ही बड़े हथियारों से इनका कभी कोई वास्ता रहा है। रूस की थल सेना में इस तरह के हजारों जवान मोर्चे पर डटे हुए हैं। इस सेना में शामिल जवानों की उम्र 20 वर्ष या उससे अधिक की है। इनमें से कई ऐसे हैं जिन्होंने अपने सामने कभी टैंक जैसे बड़े हथियार भी नहीं देखे हैं। इन्हें जंग पर जाने के नाम पर करीब 3500 डालर (भारतीया मुद्रा में करीब 3 लाख रुपये) तक मिल रहे हैं। रूस के डिफेंस एक्सपर्ट मान रहे हैं कि इनकी वजह से इस जंग में रूस के सैनिकों की मौत अधिक हो रही है। इन जवानों के पास जंग में जाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। इसका नतीजा ये हो रहा है कि इनके शरीर एक बैग में स्वदेश वापस आ रहे हैं या इन्हें वहीं पर दफ्न किया जा रहा है, या फिर अस्पताल में खुद को ये लाचार महसूस करते हैं। दो सप्ताह की ट्रेनिंग के बाद इन जवानों को ये भी नहीं पता होता है कि कोई मशीन गन कैसे आपरेट होती है या इसको कैसे इंस्टाल किया जाता है। रूस के रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट पर जवानों को चार सप्ताह की आर्म्स और सरवाइवल ट्रेनिंग का जिक्र किया गया है। फ्रंट पर जाने वाले जवानों का सरकार से एग्रीमेंट होता है। रूस के ह्यूमन राइट्स ग्रुप के डायरेक्टर सर्गी क्रिवेंको के मुताबिक यूक्रेन में जो कुछ इन जवानों के सामने होता है उन्हें इन्होंने अपनी ट्रेनिंग में नहीं सीखा होता है। क्रिवेंको ने रूसी मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि वो खुद कई ऐसे पैरेंट्स से मिले हैं जिनके बच्चे एग्रीमेंट के तहत फ्रंट पर गए हैं। रूस के कानून के मुताबिक किसी भी ऐसे जवान को जिसने चार माह की मिलिट्री या काम्बैट ट्रेनिंग न ली हो उसको सीमा पर जंग में नहीं भेजा जा सकता है। लंदन बेस्ड रायल यूनाइटेड सर्विस इंस्टिट्यूट थिंक टैंक के मिलिट्री एनालिस्ट सेम्युल क्रेनी का कहना है कि जवानों को ये आना बेहद जरूरी है कि वो दूसरों के साथ जंग के मैदान में कार्डिनेट कैसे करें। वहीं अमेरिकी थिक्र टेंक RAND के सीनियर एनालिस्ट डारा मेसिकोट का कहना है कि रूस जिन जवानों को फ्रंट पर भेज रहा है उन्हें अपने कमांडर का भी नहीं पता है। न ही अपनी यूनिट और जंग के बारे में उन्हें बहुत जानकारी होती है। इसके अलावा ये तकनीकी तौर पर बिल्कुल जीरो हैं। किसी भी चीज के खराब हो जाने पर इन्हें नहीं पता है कि उसको कैसे ठीक करना है।
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