साहून खांन नूंह उर्दू एंव फारसी भाषा के महान लेखक और शाइर मिर्जा गालिब की जयंती पर उर्दु सहाफी साबिर कासमी कि अध्यक्षता में बडकली चौक पर एक संगोष्ठी आयोजित कि गई गौरतलब है कि आज ही के दिन 223 सा
पहले 27 दिसंबर 1769 को आगरा में मिर्ज़ा गालिब का जन्म हुआ इस अवसर पर उर्दू बचाव तहरीक मेवात के सरबराह सक्रिय समाजसेवी साबिर कासमी ने कहा कि उर्दू फारसी के मशहूर शाइर मिर्जा असदूल्ला गालिब का एक ताल्लुक दशिण हरियाणा के मेवात से रहा है उन का मेवात के नवाबों के शहर फिरोजपुर झिरका से प्राचीन काल में सुसराली रिश्ता रहा है।उन कहना था कि गालिब को इस साल कि जयंती दिवस पर सच्ची श्रद्धांजलि और खिराज ए अकिदत यह होगी के उर्दू जबान और अदब को बचाने के लिए हर मंच और हर फौरम से हरियाणा वासी खासतौर पर मेवातवासी जम कर आवाज उठाऐं मेवात के मशहूर उर्दू पत्रकार साबिर कासमी ने संगोष्ठी में बताया कि गालिब के मेवात जेसे सुसराली क्षेत्र में सरकारी अपेक्षा के चलते खुले आम उर्दू भाषा सरकारी तौर पर दर बद्र और रुसवा हो रही है जिन अध्यापकों को हरियाणा सरकार ने बतौर अध्यापक उर्दू विषय पड़ाने के लिए बरसों पहले उर्दू अध्यापक नियुक्त किया था काफी समय से उन से दुसरे विषय पड़वाऐ जा रहे हैं और यह सब हरियाणा सरकार और शिक्षा निदेशालय और शिक्षा विभाग कि ना इसांफी और खुले आम कारस्तानी का प्रदर्शन नजर आ रहा है संगोष्ठी में यह बात भी चर्चा का मुख्य केंद्र बिंदू रहा कि हद तो यह है कि हरियाणा स्तिथ पंचकुला में ऊर्दू जबान और साहित्य को जिंदा रखने के लिए स्थापित कि गई कई दसकों पहले उर्दू अकेडमी पिछले पांच सालों से उर्दू बचाने और उर्दू को उत्थान के लिए कोई भी ऐसी सरगर्मी अंजाम नही दे रही है जिस के लिए उस कि स्थापना कि गई थी और जो उस का उद्देश्य है। उर्दू अध्यापक अब्दुल वहाब ने कहा कि मैं उर्दू प्रेमी और उर्दू टिचर होने कि हैसियत से उर्दू कि अहमियत में बखूबी समझ सकता हूँ कि उर्दू जबान को सरकारी तौर पर बे मोत मारने से कितना बड़ा नूकसान है। और सब से बड़ा नुकसान हिन्दूसतान कि गंगा जमनी संस्कृति को जिंदा रखने वाली जबान का खात्मा करना है उर्दू से पीएचडी डिग्री प्राप्त डाक्टर हाशिम एव डाक्टर जिया ने कहा कि उर्दू भाषा को अपने बच्चों को ना सिर्फ तालीम के नजरिए से पड़ाऐ बल्कि उर्दू जबान कि तालिम हासिल करना इस मायना भी जरूरी है कि उर्दू एक मिठी और शींरी जबान है और इस तरह उर्दू कि तालीम से आने वाली पिडियों को साहित्यिक बनाने के लिए ऊर्दू जबान कि तालीम जरूर दिलाएं उर्दू ना सिर्फ एक जबान है बल्कि मुकम्मल एक तहजीब कि आइना दार है
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