चिराग गोयल, फिरोजपुर झिरका।- गढ़ अंदर सीताराम मंदिर के जीर्णोद्धार उपलक्ष्य पर श्री सनातन धर्म सभा समिति द्वारा आयोजित श्री राम कथा के पांचवे दिन सीता स्वयंवर कथा का वर्णन किया गया। वही कथा
ाचक सचिन कौशिक गोवर्धन ने महर्षि विश्वामित्र पर जिक्र करते हुए बताया कि महाभट्ट राक्षसों के आतंक से परेशान महर्षि विश्वामित्र अयोध्या के राजा दशरथ के पास पहुंचे और उन्होंने राजा दशरथ से उनके दोनों पुत्र राम और लक्ष्मण को राक्षसों से युद्ध करने के लिए आग्रह किया। लेकिन राजा दशरथ ने महर्षि विश्वामित्र को अपने दोनों पुत्रों को युद्ध में ले जाने के लिए साफ मना कर दिया और स्वयं युद्ध में जाने की बात रखी। परंतु महर्षि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को राक्षसों से युद्ध करने के लिए अड़े रहे आखिरकार काफी जद्दोजहद के पश्चात राजा दशरथ ने अपने दोनों पुत्रों को राक्षसों के वध के लिए महर्षि विश्वामित्र को सौंप दिया। वही राम और लक्ष्मण ने ताड़का मारीच और सुभाहु का संघार करके ऋषि-मुनियों को राक्षसों के आतंक से मुक्त कराया और उनके यज्ञ को सफल बनाया। इसी क्रम में जनकपुरी से एक दूत सीता स्वयंवर के प्रस्ताव पर महर्षि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को जनकपुरी ले जाते हैं और रास्ते में गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार करते हैं। इसी बीच माता सीता का स्वयंवर रखा जाता है और राजा जनक के शर्त द्वारा शिव धनुष तोड़ने पर सीता का विवाह सुनिश्चित करने की बात कही जाती है। सभा में बैठे सभी राजा अपने अपने बल का प्रयोग करके सिर्फ धनुष उठाने का प्रयास करते हैं। लेकिन शिव धनुष को हिला नहीं पाते है। इससे राजा जनक काफी दुखी होते हैं और सोचते हैं कौन ऐसा राजा है जो इस शिव धनुष को भंग करके मेरी बेटी सीता के विवाह योग्य पुरुष होगा। वही मुनि विश्वामित्र के आग्रह पर श्री राम शिव धनुष का भंजन करते हैं और जनक दुलारी सीता श्रीराम के गले में वरमाला डालती है। जहां उनका विवाह श्री राम चंद्र के साथ किया जाता है। सीता स्वयंवर कथा के तत्पश्चात भगवान श्री राम और माता सीता जी आरती की जाती है और लोगों में प्रसाद वितरण किया जाता है। इस मौके पर प्रधान वेद प्रकाश महेश्वरी, सचिन छगन शर्मा, सुभाष सर्राफ गोयल, अमित सिंघल उर्फ मीतू, ज्ञान चंद गोयल, सुरेश चंद गोयल हलवाई, सतीश कुमार गर्ग, महेंद्र कौशिक, गिर्राज प्रसाद गोयल,बृज किशोर गोयल सहित काफी संख्या में महिलाएं व पुरुष उपस्थित रहे।
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