काबुल, अफगानिस्तान की हर समस्या की जड़ में तालिबान है। उनके शासन में अफगानी लोग इतिहास के अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि काबुल के पतन के समय से अफगानी नागरिको
ं पर तालिबान का जुल्म भयानक रूप ले चुका है। रेड लालर्टेन एनालिटिका की वेबनार में नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के पूर्व प्रवक्ता कबीर हकमल ने कहा कि तालिबान के शासन में देश में मानवीय संकट के साथ-साथ राष्ट्रीय, आर्थिक और राजनीतिक संकट भी खड़ा हो गया है। यह सारी मुसीबतें तालिबान ने ही खड़ी की हैं जिसे कुछ क्षेत्रीय और अंरराष्ट्रीय शक्तियों का समर्थन हासिल है। उन्होंने कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं कि वह लाखों लोगों की जान ले सकते हैं। लेकिन साधारण अफगानियों को देश छोड़ने को मजबूर होना पड़ रहा है और गरीबी की रेखा के नीचे रहने को विवश होना पड़ रहा है। अफगानिस्तान पर भारतीय पक्ष रखने वाले मेजर अमित बंसल ने कहा कि दोहा समझौता हिंसा और अराजकता का कारण बना है। यह बहुत बड़ी भूल थी। अमेरिका और अफगानिस्तान के बीच हुए समझौते में अफगानी लोगों की ही राय नहीं ली गई थी। अफगानिस्तान के खाद्य संकट ने हालात को और भी विकट बना दिया है। तालिबान का दावा, यूरोपीय संघ का कूटनीतिक मिशन बहाल काबुल : तालिबान सरकार के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल कहर बाखी के अनुसार अफगानिस्तान में यूरोपीय संघ के कूटनीतिक मिशन ने अपना कामकाज फिर से शुरू कर दिया है। दोनों पक्षों के बीच कई बैठकें हुई हैं। यूरोपीय संघ ने औपचारिक रूप से दूतावास खोलकर अपनी स्थायी मौजूदगी दर्ज की है।
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