अपनी भावनाओं की समझ हासिल कर अपने कार्यों-फैसलों पर उनके प्रभाव की समीक्षा करना, अपनी तरह दूसरों के मनोभावों को पढ़ पाना एवं उनका उनके कार्यों पर प्रभाव का आकलन करना और इन दोनों को ध्यान में र
ते हुए देश-काल-परिस्थितियों के मुताबिक सबसे सही और सृजनात्मक निर्णय लेना इमोशनल इंटेलिजेंस कहलाता है। कैसे संवारें इसे रोल मॉडल बनाएं पहले जमाने में संयुक्त परिवारों में रहने वाले लोग घर के बड़े-बुजुर्गों की संगत में अपनी इमोशनल इंटेलिजेंस संवार लेते थे, लेकिन अब न्यूक्लियर फैमिली में यह संभव नहीं होता। इसलिए अगर आपके आसपास अनुभवी और सुलझे हुए लोग है, तो उनके साथ ज़्यादा से ज़्यादा वक्त बिताएं। समस्याओं के समाधान के उनके तरीकों पर गौर करें। इससे धीरे-धीरे आपके इमोशनल इंटेलिजेंस लेवल में सुधार होगा। खुद को समझें अपने बारे में चिंतन-मनन करें। अपनी खूबियों-खामियों को पहचानें, पसंद-नापसंद को समझें और कार्यक्षमता को पहचानें। इससे आपको खुद की सही समझ विकसित होगी, जो परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बैठाने और फैसले लेने में मदद करेगी। शरीर के संकेतों पर ध्यान शरीर से मिलने वाले संकतों को समझकर भी इमोशनल इंटेलिजेंस को दुरुस्त किया जा सकता है। जैसे ऑफिस में जब थकान की वजह से चिडचिड़ाहट हो, तो इसे थोड़ी देर आराम के संकेत के रूप में लेना चाहिए। अतीत पर नज़र अतीत की घटनाओं पर नज़र दौड़ाएं। सोचें कि कैसे कॉलेज के दिनों में आप दोस्तों की समस्याएं आसानी से सुलझा देते थे। पुराने ईमेल और टेक्स्ट मैसेज देखकर जानें कि कैसे आपने अलग-अलग परिस्थितियों को संभाला था। उन पलों को भी याद करें जब आपने किसी के प्रति अतिरिक्त संवेदना दिखाई थी। यहां पुरानी यादें-बातें आपको भावी परिस्थितियों को संभालने की सूझ-बूझ देंगी। निरीक्षण करें अपने जीवन के हालत पर नज़र रखें। आमतौर पर किसी व्यक्ति की सेहत, कामकाज़ पारिवारिक जीवन और आर्थिक स्थितियों में बदलाव से उसकी भावनाएं प्रभावित होती है। अन्य बातें 1. भले आप किसी भी प्रोफशन में हों और कितने भी व्यस्त रहते हैं रोज़ कुछ न कुछ पढऩे-लिखने की आदत डालें। पठन-पाठन से इमोशनल हाइजीन होता है। 2. तमाम व्यस्तताओं के बीच कुछ समय सोशलाइजिंग के लिए भी निकालें। इससे अपने मनोभाव व्यक्त करने और दूसरों की भावनाओं को पढ़ने का हुनर संवरेगा। 3. अपने शौक संवारें। इससे व्यक्तित्व का विकास होगा। 4. योग-व्यायाम-खेल को अपनी जि़ंदगी में जगह दें। इनसे नकारात्मक भावनाएं बाहर आती हैं। (काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट डॉ. संदीप अत्रे से बातचीत पर आधारित)
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