तावडू, 3 दिसम्बर (दिनेश कुमार): समय की पुकार कहे या समाज की मजबूरी या कहे समय का अभाव। कारण जो भी हो बहुत थोड़े ही समय में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र में समाज का एक महत्वपूर्ण बंधन व पवित्र रिश्ते के
स्वरूप व ढ़ंग में भारी बदलाव आ गया है। कुछ ही वर्षों पहले विवाह जैसे बंधन की रस्में रिवाजे जो महीनों भर में सम्पन्न की जाती थी। वहीं अब कुछ दिनों व घंटों में पूरी की जाने लगी है। विवाह का पवित्र बंधन का सामाजिक महत्व के साथ-साथ इसका आध्यात्मिक रूप से भी भारी महत्व माना गया है। विवाह के पवित्र बंधन से दो आत्माओं का भी पवित्र रस्मों रिवाजों से समाज को अटूट अपनापन, भाईचारों व सभ्यता का अपार ज्ञान मिलता है। पहले शादी की निश्चि तिथि की चिटठी (विवाह पत्रिका)कम से कम सवा माह पहले या इससे भी अधिक समय पहले लडक़े वालों के घर संदेश वाहकों के माध्यम से भेजी जाती है। विवाह पत्रिका पंहुचने की खुशी में लडक़े पक्ष की महिलाओं द्वारा इक्टठी होकर गीत गाये जाते थे। जिससे आस पडोस, गली मौहल्ले में बिना बताये ही शादी का पता लग जाता था। जबकि वर्तमान में इसका महत्व कम होने लगा है। लगन भी शादी की तिथि से कम से कम सात या इससे से भी अधिक समय पहले मंगा लिया जाता था। जिससे महिला रिश्तेदारों, बहन, बेटियों व बुआ नातेदारों को शादी की रस्में रिवाजें पूरी करने व परिवार की महिलाओं से मिलकर गीत गाकर मनोरंजन करने का भरपूर अवसर मिल जाता था। शादी में महिलाओं द्वारा गाये गये गीतों से ही आस पडोस गली मौहल्ले में शादी की भारी रहस्यों व अर्थो से भरे होते थे। जबकि वर्तमान में तो अधिकतर शदियों के लगन मात्र तीन या दो दिन के ही मंगवाये जाने लगे है। महिलाओं के गीत का स्थान डीजे ने ले लिया है।
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