नई दिल्ली । पश्चिम बंगाल की सरकार और केंद्र एक बार फिर से अफसरों को लेकर आमने सामने आ गए हैं। एक बार फिर से अफसरों को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कड़ा रुख इख्तियार करते ह
ए उन्हें केंद्र का आदेश मानने से इनकार कर दिया है। कहने का अर्थ साफतौर पर ये है कि राज्य सरकार केंद्र को लेकर काफी हद तक मुखर हो रही है और अलग रुख इख्तियार कर रही है। इस बार जिस वजह से ये विवाद खड़ा हुआ है उसकी वजह भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हुआ हमला है। इस हमले में उन्हें भी चोट आई थी। केंद्र ने इसके बाद कड़ा रुख अपनाया और कहा कि पार्टी प्रमुख की सुरक्षा में खामी बरतने और उन पर हमला करवाने के लिए राज्य सरकार जिम्मेदार है। वहीं मुख्यमंत्री ने इस हमले पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्हें पूरी सुरक्षा प्राप्त थी फिर ये कैसे संभव हुआ। बहरहाल, पूरा मामला अब एक सियासी रंग इख्तियार कर चुका है। आपको बता दें कि अगले वर्ष राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसको देखते हुए दोनों ही पार्टियों ने कमर कस ली है। हम यहां पर आपके बता रहे हैं कि कब-कब राज्यों और केंद्र के बीच अधिकारियों को लेकर तनातनी हुई है। केंद्र ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर हुए हमले के लिए जिन तीन आईपीएस अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया है उनमें डायमंड हार्बर के पुलिस अधीक्षक भोलानाथ पांडे, प्रेसिडेंसी रेंज के पुलिस उप महानिरीक्षक प्रवीण त्रिपाठी और दक्षिण बंगाल के अतिरिक्त महानिदेशक राजीव मिश्रा हैं। इन तीनों को ही केंद्र ने नई नियुक्तियों पर तैनात होने का आदेश दिया है। इनमें आईपीएस राजीव मिश्रा को पांच वर्षों के लिए आईटीबीपी का आईजी बनाया गया है। प्रवीण त्रिपाठी को सशस्त्र सीमा बल का डीआईजी और भोलानाथ पांडे को ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट में एसपी लगाया गया है। लेकिन राज्य सरकार ने इन तीनों को ही नई नियुक्यिों पर भेजने से साफ इनकार कर दिया है। इससे पहले नड्डा पर हुए हमले के बाद जब केंद्र ने राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर बुलाई गई बैठक पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव और राज्य के पुलिस महानिदेशक को 14 दिसंबर को तलब किया था, तब भी राज्य सरकार ने उन्हें इस बैठक में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था। राज्य सरकार का कहना था कि इस मामले की जांच हो रही है लिहाजा ये दोनों अधिकारी केंद्र की बैठक में हिस्सा नहीं ले सकेंगे। इससे पहले ममता और केंद्र सरकार वर्ष 2019 में भी इसी तरह के मामले में आमने सामने आ चुकी हैं। बीते वर्ष फरवरी में सारधा चिट फंड घोटाले की जांच के लिए कोलकाता पहुंची सीबीआई की टीम को वहां हिरासत में ले लिया गया था। सीबीआई टीम को वहां के कमिश्नर राजीव कुमार से इस बारे में पूछताछ करनी थी। इसके खिलाफ ममता धरने पर बैठ गई थीं। उस वक्त मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा था। वर्ष 2001 में भी इसी तरह का मामला तमिलनाडु में सामने आया था। ये मामला जयललिता के शपथ ग्रहण के डेढ़ माह बाद सामने आया था, जब तमिलनाडु पुलिस की सीबी-सीआइडी ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि और केंद्र सरकार में मंत्री मुरासोली मारन और टीआर बालू के ठिकानों पर छापे मारकरउन्हें गिरफ्तार किया था। उस वक्त केंद्रीय गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने इस मामले में शामिल रहे तीनों अधिकारियों को नई नियुक्ति के तौर पर दिल्ली बुलाया था। इस आदेश को मानने से जयललिता ने साफ इनकार कर दिया था। बाद में कोर्ट से भी इस पर रोक लगा दी गई थी। तमिलनाडु और केंद्र के बीच 2014 में दोबारा इसी तरह का विवाद उस वक्त हुआ था जब केंद्र ने तमिलनाडु की अधिकारी अर्चना रामासुंदरम को सीबीआई में अतिरिक्त निदेशक के तौर पर नियुक्ति के आदेश दिए थे। राज्य सरकार ने इसको मानने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद अर्चना को सशस्त्र सीमा सुरक्षा बल का प्रमुख बनाया गया था। वर्ष 2012 में पीएम नरेंद्र मोदी के गृह नगर गुजरात में भी ऐसा ही मामला सामने आया था। उस वक्त आईपीएस अधिकारी कुलदीप शर्मा को केंद्र में पोस्टिंग के लिए कोर्ट से गुहार लगानी पड़ी थी।
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